Tuesday, October 4, 2016

पुस्तकालय का इतिहास

पुस्तकालय का इतिहास

प्राचीन पुस्तकालय

वृक्ष की छाल से बने कागज का आविष्कार मिस्र में हुआ था। मिस्री लिपि का विकासकाल ईसा से 2000 वर्ष पूर्व माना जाता है। लगभग ईसा पूर्व 16वीं शताब्दी में राजा एमोनोफिस के काल का एक ग्रंथ वृक्ष-तत्व-निर्मित कागज प्राचीन मिस्र में अनेक पुस्तकालय थे1 इनमें से कई विदेशी आक्रमणकारियों के हाथ लग गए जिनमें से अनेक ग्रंथ तो ग्रीक राज्य के हाथ पड़े :
ये पुस्तकालय प्राय: वहाँ के विशाल मंदिरों और राजप्रासादों के साथ संबद्ध थे। सबसे पहला पुस्तकालय राजा ओसीमंडिया ने स्थापित किया था। उसने पवित्र पुस्तकों का एक विशाल संग्रह स्थापित किया था। राजा ओसीमंडिया ने पुस्तकालय के प्रवेशद्वार पर 'आत्मा के लिए ओषधि' शीर्षक पट्ट लगवाया था। पुजारियों के सरंक्षण में प्राचीन मिस्र में अनेक पुस्तकालयों का विकास हुआ था।
प्राचीन असीरिया राज्य की राजधानी निनिमि नगर में असुरवाणीपाल राजा का पुस्तकालय अत्यंत प्रसिद्ध था। इस पुस्तकालय में ग्रंथों की संख्या 20,000 थीं और यह राजा के निजी प्रासाद में स्थित था। राजा असुरवाणीपाल बड़े साहित्यप्रेमी थे और इस पुस्तकालय की स्थापना में उन्होंने बड़ा योग दिया था।
प्राचीन ग्रीस राज्य में पिसिष्ट्राटसन ने सर्वप्रथम एक पुस्तकालय की स्थापना की थी। इसके पश्चात्‌ अलेस गैलिस एवं महान्‌ दार्शनिक प्लेटो ने भी पुस्तकों के संग्रह स्थापित किए थे। ट्रावा के मतानुसार अरस्तू ही पहला दार्शनिक था जिसने पुस्तकालय की स्थापना की, परंतु अलैक्जैंड्रिया का प्राचीन पुस्तकालय ईसा से लगभग 300 वर्ष पूर्व स्थापित हुआ था। इस महानगर में दो प्रमुख पुस्तकालयों का उल्लेख मिलता है। बड़ा पुस्तकालय विश्वविद्यालय के साथ संबद्ध था। दूसरा पुस्तकालय सिरापियम विभाग के साथ था। अनुमान लगाया जाता है कि अलैक्जैंड्रिया के विशाल पुस्तकालय में लगभग 70,000 ग्रंथ थे। जूलियस सीजर ने 47 ई. में इस नगर पर आक्रमण किया और पुस्तकालय तथा पुस्तकालय के सभी ग्रंथ जलकर राख हो गए। आनेवाली पीढ़ियों के लिए यह महान्‌ क्षति थी। इस क्षतिपूर्ति की ओर क्लेओपेट्रा का ध्यान गया और उसने अलैक्जैंड्रिया में फिर एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की। उसने अनेक पुस्तकालयों का जीर्णोंद्धार भी कराया। सारसेनियों की भयंकर आक्रमण ज्वाला में यह पुस्तकालय भी सदा के लिए भस्म हो गया और रहा सहा संग्रह ओमर खलीफा की सेना ने समाप्त कर दिया।
ग्रीक साहित्य का रोम में बड़ा प्रचार था। अरस्तू के निजी पुस्तकालय को रोम के विजेता अपने यहाँ ले आए थे। ईसा से एक शताब्दी पूर्व लैटिन साहित्य के स्वर्णयुग में निजी पुस्तकालय कितने ही घरों में स्थापित किए जा चुके थे। परंतु जूलियस सीजर ने ही रोम में सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित करने की योजना बनाई थी जिसे बाद में उनके एक घनिष्ट मित्र एसिनिबस पोलियो ने कार्यान्वित की।
सम्राट् आगस्टस ने भी पोलियो की परंपरा का निर्वाह किया और उसने अनेक पुस्तकालयों की स्थापना की। रोम की राजधानी में चौथी शताब्दी में लगभग 28 महान्‌ ग्रंथागार थे। इनके सिवा लिवर, कोमन, मिलान, अथेंस, स्मिर्ण, पाट्री और हाकूलेनियम आदि प्राचीन नगरों में भी पुस्तकालयों के होने का उल्लेख मिलता है।
अन्य देशों की भाँति भारत में भी पुस्तकालयों की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। आज के लगभग छह हजार वर्ष पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता अपनी चरम सीमा पर थी। इस प्रकार के अनेक प्रमाण मोहनजोदड़ो औरहड़प्पा की खुदाई से प्राप्त हुए हैं। सिंधु सभ्यता का सुसंस्कृत समाज पंजाब से लेकर सिंधु और बिलोचिस्तान तक फैला हुआ था। संभवत: उस काल में चित्रलिपि का विकास भारत में हो चुका था। इतिहासकार यह बात स्वीकार करते हैं कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में अनेक पुस्तकालय थे। सिंधु सभ्यता के पतन के पश्चात्‌ लगभग 3000 ई. पूर्व भारत में आर्यों का आगमन हुआ। इन्होंने ब्राह्मी लिपि का आविष्कार किया। भोजपत्रों एवं ताड़पत्रों पर ग्रंथ लिखे जाते थे, परंतु शिष्यों के लिए उनका उपयोग सीमित ही था। गुरुओं के पास इस प्रकार की हस्तलिखित पुस्तकों का संग्रह रहता था जिसे हम निजी पुस्तकालय कह सकते हैं। वैदिक काल में वेदों, इतिहासों और पुराणों, व्याकरण और ज्ञान की अनेकानेक शाखाओं से संबंधित ग्रंथों को लिपिबद्ध किया गया। इस काल में अनेक विषय गुरुकुलों में छात्रों को पढ़ाए जाते थे और उनसे संबंधित अनेक ग्रंथ पुस्तकालयों पर भी पड़ा। अहमदाबाद, पटना, पूना, नासिक और सूरत आदि नगरों में आज भी प्राचीन जैन ग्रंथों के संग्रह हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के प्रयत्न से दक्षिण में पाँच ग्रंथालयों की खोज की गई तो उनमें अनेक ताड़पत्र हस्तलिखित ग्रंथ और अप्रकाशित ग्रंथ प्राप्त हुए।
बौद्धकाल में तक्षशिला और नालंदा जैसे शिक्षा केंद्रों का विकास हुआ जिनके साथ बहुत अच्छे पुस्तकालय थे। तक्षशिला के पुस्तकालय में वेदआयुर्वेदधनुर्वेदज्योतिषचित्रकलाकृषिविज्ञानपशुपालन आदि अनेक विषयों के ग्रंथ संगृहीत थे। ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व नालंदा के विशाल पुस्तकालय का वर्णन मिलता है। इस पुस्तकालय का नाम धर्मजंग था जिसकी स्थापना सभादित्य ने की थी। इस पुस्तकालय को अनेक बड़े-बड़े राजाओं और धनी साहूकारों से आर्थिक सहायता मिलती थी। पुस्तकालय में तीन भाग थे- रत्नोधि, रत्नसागर और रत्नरंजम। पुस्तकें इन विभागों के विषयानुसार व्यवस्थित की जाती थीं और उनकी पूर्ण सुरक्षा की जाती थी। अनेक विदेशी विद्वानों ने, जैसे चीनी यात्री फाहीयानह्वेनसांग और त्सिंह ने अपने यात्रावृत्तांतों में नालंदा पुस्तकालय का वर्णन किया है। ये अपने साथ अनेक हस्तलिखित ग्रंथ भी ले गए थे। इनके अतिरिक्त अनेक विदेशी विद्वान नालंदा के पुस्तकालय में अध्ययन करने के लिए आए। वैसे तो बौद्ध राजाओं के निर्बल होने पर अनेक शासकों ने इस पुस्तकालय पर कुदृष्टि डाली परंतु बख्त्यार खिलजी ने सन्‌ 1205 ई. में इसका पूर्ण विध्वंस कर दिया। कुछ ग्रंथों को लेकर छात्र और भिक्षु भाग गए। इस प्रकार शताब्दियों से संरक्षित और पोषित ज्ञान के इस अनन्य केंद्र का लगभग अंत ही हो गया। इन्हीं पुस्तकालयों की श्रेणियों में विक्रमशिला एवं वल्लभी के पुस्तकालय थे जो पूर्ण रूप से विकसित थे। राजा धर्मपाल ने विक्रमशिला के पुस्तकालय की स्थापना की थी और यहाँ पर अनेक हस्तलिखित ग्रंथ सुसज्जित थे। इस पुस्तकालय का भी दु:खद विध्वंस बख्त्यार खिजली की कुदृष्टि के द्वारा ही हुआ।
गुजरात राज्य में वल्लभी नगर में एक विशाल पुस्तकालय था जिसकी स्थापना राजा धारसेन की बहन दक्षा ने की थी। इस पुस्तकालय में पाठ्‌य ग्रंथों के अतिरिक्त अनेकानेक विषयों की पुस्तकें संगृहीत थीं। पुस्तकालय का संपूर्ण व्यय राजकोष से ही वहन किया जाता था। इस प्रकार प्राचीन भारत में पुस्तकालयों का समुचित विकास अपनी चरम सीमा पर था।
मुस्लिम काल में भी हमारे देश में अनेक पुस्तकालयों का उल्लेख मिलता है जिनमें नगरकोट का पुस्तकालय एवं महमूद गवाँ द्वारा स्थापित पुस्तकालय था। अकबर के पुस्तकालय में लगभग 25 हजार ग्रंथ संगृहीत थे। तंजीर में राजा शरभोजी का पुस्तकालय आज भी जीवित है। इसमें 18 हजार से अधिक ग्रंथ तो केवल संस्कृत भाषा में ही लिपिबद्ध हैं। विभिन्न विषयों से संबंधित भारतीय भाषाओं के अति प्राचीन दुर्लभ ग्रंथ भी यहाँ सुरक्षित हैं।

आधुनिक पुस्तकालय एवं पुस्तकालय आंदोलन

चौथी शताब्दी के अंत में पश्चिमी साम्राज्यों के पतन के साथ-साथ प्राचीन पुस्तकालयों का विकास भी अवरुद्ध हो गया और लगभग 12वीं शताब्दी तक और कोई क्रांतिकारी प्रयास नहीं हुआ। परंतु इसके पश्चात्‌ लोगों का ध्यान धीरे-धीरे अध्ययन एवं साहित्य के संरक्षण की ओर आकर्षित होने लगा और 15वीं शताब्दी के पश्चात्‌ तो पश्चिम के अनेक देशों में सार्वजनिक पुस्तकालयों के लिए महत्वपूर्ण प्रयास होने लगे।
ब्रिटेन में ब्रिटिश म्यूजियम नामक पुस्तकालय की स्थापना सन्‌ 1753 ई. में हुई। इसमें अनेक पुस्तकालयों के ग्रंथों को सम्मिलित कर दिया गया एवं इस पुस्तकालय को अनेक विद्वानों के निजी संग्रह प्राप्त होते रहे। 1763 में जार्ज तृतीय ने प्रसिद्ध जार्ज टामसन संग्रह, जिसमें 2220 ग्रंथ थे, भेंट किया। 1820 में सर जोसेफ बैंक ने अपना 16000 ग्रंथों का निजी बहुमूल्य पुस्तकालय इस पुस्तकालय को दानस्वरूप दिया। जार्ज तृतीय का 80252 दुर्लभ ग्रंथों का संग्रह जार्ज चतुर्थ ने इस पुस्तकालय को 1823 में दिया। इस समय पुस्तकालय में ग्रंथों की संख्या 60 लाख है। लगभग 75 हजार हस्तलिखित ग्रंथ यहाँ सुरक्षित हैं। विश्व की अनेक भाषाओं के ग्रंथ यहाँ पर संगृहीत हैं। पुस्तकालय के कर्मचारीगण अपने विषयों के अधिकारी विद्वान्‌ होते हैं।
ब्रिटेन में 1857 ई. में पेटेंट आफिस के पुस्तकालय की स्थापना हुई। इसके साथ ही उसी वर्ष साइंस लाइब्रेरी भी यहाँ स्थापित हुई। आर्क्सफोर्ड विश्वविद्यालय का विशाल पुस्तकालय 14वीं शताब्दी में स्थापित हुआ और कैंब्रिज विश्वविद्यालय का महान्‌ पुस्तकालय 15वीं शताब्दी के आरंभ में स्थापित हुआ। इस पुस्तकालय को भी कापीराइट की सुविधा प्राप्त है। 1881-1905 में ब्रिटिश म्युजियम की ग्रंथसूची प्रकाशित की गई जो 108 खंडों में पूर्ण हुई। इसका दूसरा संस्करण 1931 में आरंभ हुआ।
फ्रांस में वैसे तो पुस्तकालयों का श्रीगणेश 5वीं और 6ठी शताब्दी में हुआ था परंतु 14वीं शताब्दी में यहाँ के राष्ट्रीय पुस्तकालय बिबिलयोथैक नेशनेल की स्थापना हुई थी।
जर्मनी में पुस्तकालयों का विकास अति प्राचीन काल से हुआ माना जाता है। बर्लिन में सरकारी पुस्तकालय की स्थापना 1661 ई. में हुई थी। यहाँ विश्व की अनेकानेक भाषाओं के अपार संग्रह हैं। आस्ट्रिया में सबसे प्राचीन पुस्तकालय साजवर्ग का सेंट पीटर पुस्तकालय है जो 11वीं शती में स्थापित हुआ था। प्रेग के सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना सन्‌ 1336 ई. में हुई थी। इसी प्रकार स्विटजरलैंड में 1895 ई. में, बेल्जियम में 1837 में हालैंड में 1798 ई. में 1661 ई. में तथा राष्ट्रीय पुस्तकालय की स्थापना हुई।
क्रांति के पश्चात्‌ सोवियत संघ में पुस्तकालयों का तीव्र गति से विकास हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पुस्तकालयों की संख्या लगभग तीन लाख हो गई। सबसे प्राचीन पुस्तकालय मास्को में लेनिन पुस्तकालय है। यहाँ लगभग पाँच हजार पाठक प्रति दिन अध्ययन करने आते हैं। रूस में प्रकाशित प्रत्येक पुस्तक की एक प्रति इस पुस्तकालय को प्राप्त होती है।
चीन और जापान में भी पुस्तकालयों का विकास प्राचीन काल से होता रहा है। चीन के राष्ट्रीय पुस्तकालय में लगभग पाँच करोड़ पुस्तकें हैं और यहाँ के विश्वविद्यालय में भी विशाल पुस्तकालय हैं। इंपीरियल कैबिनो लाइब्रेरी के राष्ट्रीय पुस्तकालय की स्थापना 1881 ई. में हुई थी। इसके अतिरिक्त जापान में अनेक विशाल पुस्तकालय हैं।
1713 ई. में अमरीका के फिलाडेलफिया नगर में सबसे पहले चंदे से चलनेवाले एक सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना हुई। लाइब्रेरी ऑव कांग्रेस अमरीका का सबसे बड़ा पुस्तकालय है। इसकी स्थापना वाशिंगटन में सन्‌ 1800 में हुई थी। इसमें ग्रंथों की संख्या साढ़े तीन करोड़ है। पुस्तकालय में लगभग 2,400 कर्मचारी काम करते हैं। समय समय पर अनेक पुस्तकों का प्रकाशन भी यह पुस्तकालय करता है और एक साप्ताहिक पत्र भी यहाँ से निकलता है।
अमरीकन पुस्तकालय संघ की स्थापना 1876 में हुई थी और इसकी स्थापना के पश्चात्‌ पुस्तकालयों, मुख्यत: सार्वजनिक पुस्तकालयों, का विकास अमरीका में तीव्र गति से होने लगा। सार्वजनिक पुस्तकालय कानून सन्‌ 1849 में पास हुआ था और शायद न्यू हैंपशायर अमरीका का पहला राज्य था जिसने इस कानून को सबसे पहले कार्यान्वित किया। अमरीका के प्रत्येक राज्य में एक राजकीय पुस्तकालय है।
सन्‌ 1885 में न्यूयार्क नगर में एक बालपुस्तकालय स्थापित हुआ। धीरे-धीरे प्रत्येक सार्वजनिक पुस्तकालय में बालविभागों का गठन किया गया। स्कूल पुस्तकालयों का विकास भी अमरीका में 20वीं शताब्दी में ही प्रारंभ हुआ। पुस्तकों के अतिरिक्त ज्ञानवर्धक फिल्में, ग्रामोफोन रेकार्ड एवं नवीनतम आधुनिक सामग्री यहाँ विद्यार्थियों के उपयोग के लिए रहती है।
आस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध शहर कैनबरा में राष्ट्रसंघ पुस्तकालय की स्थापना 1927 में हुई। वास्तव में पुस्तकालय आंदोलन की दिशा में यह क्रांतिकारी अध्याय था। मेलबोर्न में विक्टोरिया पुस्तकालय की स्थापना 1853 में हुई थी। यह आस्ट्रेलिया का विशाल पुस्तकालय हैं। इसमें ग्रंथों की संख्या 760,000 है।
न्यूजीलैंड छोटा-सा देश है। पर इसमें 400 विशाल सार्वजनिक पुस्तकालय हैं। यहाँ पर एक राष्ट्रीय पुस्तकालय भी है जो देश के सार्वजनिक पुस्तकालयों, शिक्षण संस्थाओं से संबद्ध एवं अन्य पुस्तकालयों को पुस्तकें उधार देता है। विलिंग्डन में संसद् पुस्तकालय है जिसे कापीराइट की भी सुविधाएँ प्राप्त हैं। इस समय यहाँ के संसद् पुस्तकालय में ग्रंथों की संख्या 220,000 है।
दक्षिण अफ्रीका में भी पुस्तकालयों का समुचित्‌ विकास हुआ है। दक्षिण अफ्रीकी पुस्तकालय केपटाउन में 1818 में स्थापित किया गया था। इसे कापीराइट की सुविधा प्राप्त है। ग्रंथों की संख्या 310,000 है। दूसरा विशाल पुस्तकालय प्रीटोरिया स्टेट लाइब्रेरी है जिसमें ग्रंथों की संख्या 200,000 है। ये दोनों पुस्तकालय मिलकर राष्ट्रीय पुस्तकालय का कार्य करते हैं।

आधुनिक भारत में पुस्तकालयों का विकास

आधुनिक भारत में पुस्तकालयों का विकास बड़ी धीमी गति से हुआ है। हमारा देश परतंत्र था और विदेशी शासन के कारण शिक्षा एवं पुस्तकालयों की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। इसी से पुस्तकालय आंदोलन का स्वरूप राष्ट्रीय नहीं था और न इस आंदोलन को कोई कानूनी सहायता ही प्राप्त थीं। बड़ौदा राज्य का योगदान इस दिशा में प्रशंसनीय रहा है। यहाँ पर 1910 ई. में पुस्तकालय आंदोलन प्रारंभ किया गया। राज्य में एक पुस्तकालय विभाग खोला गया और पुस्तकालयों चार श्रेणियों में विभक्त किया गया- जिला पुस्तकालय, तहसील पुस्तकालय, नगर पुस्तकालय, एवं ग्राम पुस्तकालय आदि। पूरे राज्य में इनका जाल बिछा दिया गया था। भारत में सर्वप्रथम चल पुस्तकालय की स्थापना भी बड़ौदा राज्य में ही हुई। श्री डब्ल्यू. ए. बोर्डन पुस्तकालय विभाग के अध्यक्ष थे।
इस समय बड़ौदा राज्य के और मुख्यत: बोर्डन महोदय के प्रयत्न से बड़ौदा राज्य पुस्तकालय संघ की स्थापना हुई। बड़ौदा शहर में एक केंद्रीय पुस्तकालय स्थापित किया गया जिसे राज्य के शासक से 20,000 पुस्तकें प्राप्त हुई। बाद में बोर्डन महोदय ने यहाँ पर पुस्तकालयविज्ञान की शिक्षा का भी प्रबंध किया और बहुत से पुस्तकाध्यक्षों को शिक्षा दी गई।
मद्रास राज्य में सन्‌ 1927 ई. में अखिल भारतीय सार्वजनिक पुस्तकालय संघ का अधिवेशन हुआ। अगले वर्ष मद्रास राज्य पुस्तकालय संघ की स्थापना की गई। डॉ॰ एस. आर. रंगनाथन के प्रयत्न से सन्‌ 1933 ई. में 'लाइब्रेरी ऐक्ट' विधानसभा द्वारा पारित किया गया। पुस्तकालय संघ ने पुस्तकालय विज्ञान के 20 ग्रंथों का प्रकाशन किया जिनमें मुख्यत: डॉ॰ रंगनाथन के ग्रंथ थे।
संघ ने 1929 ई. में एक 'ग्रीष्मकालीन स्कूल' प्रारंभ किया जिसका उद्देश्य पुस्तकालय विज्ञान में प्रशिक्षण देना था। बाद में इसी संघ की प्रेरणा से मद्रास विश्वविद्यालय ने पुस्तकालय विज्ञान में डिप्लोमा कोर्स का श्रीगणेश किया।
बंबई राज्य में पुस्तकालय आंदोलन का प्रारंभ सन्‌ 1882 में हुआ, जब धारबार में नेटिव सैंट्रल लाइब्रेरी की स्थापना की गई। रानेवेन्नूर में एक पुस्तकालय की स्थापना 1873 ई. में हुई। सन्‌ 1890 ई. में कर्नाटक विद्यावर्धक संघ की स्थापना की गई, जिससे पुस्तकालय आंदोलन को बड़ी सहायता मिली। इस संघ ने अनेक पुस्तकें बंबई राज्य के पुस्तकालयों को नि:शुल्क दीं। सन्‌ 1924 में आल इंडिया लाइब्रेरी कफ्रौंस बेलगाँव में हुई और 1929 में श्री वेंकट नारायण शास्त्री के सभापतित्व में बंबई कर्नाटक राज्य लाइब्रेरी कफ्रौंस धारवार में हुई। इस अवसर पर समाचारपत्रों, पत्रिकाओं की प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया।
बंबई राज्य में सन्‌ 1939 में पुस्तकालय विकास समिति बनाई गई जिसने 1940 ई. में अपनी रिपोर्ट सरकार को दी; परंतु स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात्‌ ही समिति की रिपोर्ट पर कार्यवाही संभव हो सकी। इस राज्य में केंद्रीय पुस्तकालय और अनेक विकसित पुस्तकालय स्थापित हो चुके हैं। बंबई विश्वविद्यालय में पुस्तकालयविज्ञान की शिक्षा भी दी जाती है।
बिहार राज्य में पुस्तकालय आंदोलन थोड़ा देर से प्रारंभ हुआ। खुदाबक्श पुस्तकालय 1891 ई. में पटना में स्थापित किया गया। इसमें आठ हजार से अधिक हस्तलिखित ग्रंथ और दुर्लभ प्राचीन चित्रों का बहुत सुंदर संग्रह किया गया। सन्‌ 1915 ई. में पटना विश्वविद्यालय के पुस्तकालय की तथा 1924 ई. में सिन्हा पुस्तकालय की स्थापना पटना में की गई। सन्‌ 1937 में बिहार पुस्तकालय संघ की स्थापना हुई।
उत्तर प्रदेश में पुस्तकालयों का विकास आधुनिक काल में समुचित ढंग से हुआ है। यहाँ के सभी विश्वविद्यालयों के साथ पुस्तकालय खोले गए, जिनमें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का गायकवाड़ पुस्तकालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का पुस्तकालय और लखनऊ तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालयों के पूर्ण विकसित पुस्तकालय हैं। नागरीप्रचारिणी सभा, काशी का आर्यभाषा पुस्तकालय, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद का हिंदी संग्रहालय, लखनऊकी अमीनुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी आदि पुस्तकालय इस प्रदेश के प्रमुख पुस्तकालय हैं। 1941 ई. में इलाहाबाद में चिंतामणि मैमोरियल लाइब्रेरी की स्थापना अखिल भारतीय सेवा समिति के प्रयत्नों से हुई। यह पुस्तकालय समाजसेवा संबंधी साहित्य का अद्वितीय संग्रह है। उत्तर प्रदेश के पुस्तकालय संघ द्वारा 1737 ई. में प्रांत भर के पुस्तकालयों की एक डाइरेक्टरी प्रस्तुत की गई। 1941 ई. में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा का श्रीगणेश हुआ।
1915 ई. में पंजाब विश्वविद्यालयलाहौर का पुस्तकालय श्री ए. डी. डिकन्सन के प्रयत्न से विकसित किया गया। पंजाब पुस्तकालय संघ की स्थापना 1929 ई. में हुई और 1945 ई. में लाहौर से इंडियन लाइब्रेरियन नामक पत्रिका प्रकाशित की गई एवं मॉडर्न लाइब्रेरियन नामक त्रैमासिक पत्रिका भी निकाली गई।
बंगाल पुस्तकालय संघ की स्थापना 1931 ई. में हुई। इसकी ओर से 1938 में एक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। संघ ने पुस्तकालय विज्ञान की दिशा में भी प्रशंसनीय कार्य किया। 1931 ई. में इंपीरियल लाइब्रेरी (राष्ट्रीय पुस्तकालय) में पुस्तकालय विज्ञान की कक्षाएँ खोली गई और इसके पश्चात्‌ 1945 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय ने इस विषय से संबंधित विभाग की स्थापना की।
इसी प्रकार असम और उड़ीसा में भी पुस्तकालय संघों की स्थापना की गई। 1945 ई. में पूना पुस्तकालय संघ और 1946 में दिल्ली पुस्तकालय संघ का गठन किया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय में पुस्तकालय विज्ञान में स्नातक स्तर की पढ़ाई प्रारंभ की गई और स्नातकोत्तर कक्षाओं की पढ़ाई का भी प्रबंध किया गया। पुस्तकालय विज्ञान में अनुसंधान करने की दिशा में दिल्ली विश्वविद्यालय ने ही मार्गदर्शन प्रदान किया।

Sunday, September 25, 2016

Hindi E-Book: Reference & Information Services

https://docs.google.com/viewer?a=v&pid=forums&srcid=MDE0MTU1NTM0NzU2NjM2NDg4NDcBMTIxNTU3NjMzMTk5MzA2NTQyNzgBelptc0NrUURCQUFKATAuMQEBdjI

Monday, September 19, 2016

Library Science Subject Refresher Course and orientation course not counting mark for Career Advances scheme (CAS).

New regulation of UGC 11 july 2016 

(Gazette of India)


Library Science Subject Refresher Course and orientation course not counting mark for Career Advances scheme (CAS).

https://docs.google.com/viewer?a=v&pid=forums&srcid=MDE0MTU1NTM0NzU2NjM2NDg4NDcBMDMyNDI1MTA5NTc2MTg2NzMwMTABQ3ptU2hwLTVCQUFKATAuMQEBdjI

Sunday, September 18, 2016

B.LIb. Guide 2015

https://www.facebook.com/E-Book-671272016239685/

https://docs.google.com/viewer?a=v&pid=forums&srcid=MDE0MTU1NTM0NzU2NjM2NDg4NDcBMTQyODc3ODcwOTMzODU2NjM0NzMBVDZwLV9LanJBUUFKATAuMQEBdjI

Sunday, July 31, 2016

Andhra Pradesh and Telangana High court Judgement "Librarian comes under the definition of Teacher"

A division bench of Hon’ble Sri Justice Sanjay Kumar and Hon’ble Justice

 Dr B.Sivasankar Rao of High Court of Andhra Pradesh and Telangana states 

delivered its order with regard to petitioner Mr Abdul Hakeem, Assistant 

Professor/Assistant Librarian (SG) of Prof. Jayasankar Telangana State Agricultural 

University, Hyderabad stating that the petitioner comes within the definition of 

teacher and thereby entitled to continue in service till completion of 60 years of age. 



Copy of judgement can be obtained from the following link.


Wednesday, March 30, 2016

Latest Order B.Ed. Scale (Rs.365-760) to Graduate Librarians

Latest Order B.Ed. Scale (Rs.365-760) to Graduate Librarians

https://docs.google.com/viewer?a=v&pid=forums&srcid=MDE0MTU1NTM0NzU2NjM2NDg4NDcBMDI0MzUwMzE2MDgxMjAzNTUxNzYBLVFpN0poMkFDUUFKATAuMgEBdjI


https://docs.google.com/viewer?a=v&pid=forums&srcid=MDE0MTU1NTM0NzU2NjM2NDg4NDcBMDI0MzUwMzE2MDgxMjAzNTUxNzYBLVFpN0poMkFDUUFKATAuMQEBdjI


Friday, March 18, 2016

Maaharshtra_Govt_Librarians_are_eligiable_for_Principal

https://cd5703e2-a-e358f3e9-s-sites.googlegroups.com/a/lislinks.com/circular/home/UPA-Govt.jpg?attachauth=ANoY7cq4n8xCuaXMANn3SyujcLHQLMuGZqmwMwLur_y6CXkxU_NQxVtN7pfNRTDqU-UqeNdG-DyTaf-uw2aWhk6tiN7PXCo2WxpeHkBxwtGjJ5r19pe0pKzNsDE1URDP1zDyXkYbyA42gPoxu3Y8YYkv_UY1R1OBhV25MOruvo5V-VZUSwhewNBuEGIDj4LIwN0zUDHBcaQWUDotAndr01EMln_Bi5i3yw%3D%3D&attredirects=0





https://cd5703e2-a-e358f3e9-s-sites.googlegroups.com/a/lislinks.com/circular/home/Maaharshtra_Govt_Librarians_Can_be_Principal.JPG?attachauth=ANoY7cqO1EmQzb7Dc5z7eLbaJJqxz-efp-308QO9R3roESYzvR27rT6qWXvztscV5AR5bbp71Wu1wQyLQUcXykZCf2MR8BM7aV8xEngZIx0PTHMpPEcZJdLOaoeHEsSU7KYNANK8BLUIiA2EKKIMI7tu26HIy8FWceAP1LVxafpAQ0Ds_7v3ZvhF6qy_vpQeEb3XRW-3Jbme3p8eR2vnwxdE-bwzvaCF5ow8HWoQzAe5li21GL5y_xhUrLLBGeDufMe_JTl4p3hB&attredirects=0





Thursday, March 17, 2016

API Form for Librarian

https://docs.google.com/viewer?a=v&pid=forums&srcid=MDE0MTU1NTM0NzU2NjM2NDg4NDcBMDg0MDQ4NDAwODQzMjQ4MzIwODcBZHI2S21xbFRCZ0FKATAuMQEBdjI



Wednesday, March 16, 2016

ILA wants govt to give impetus to public library system

http://www.ptinews.com/news/7219957_ILA-wants-govt-to-give-impetus-to-public-library-system.html%20Inbox%20x


  • ILA wants govt to give impetus to public library system

13:49 HRS IST
Vadodara, Mar 15 (PTI) The Indian Library Association would approach Centre seeking thrust on the public library system under 'Digital India' mission and to select libraries as partners in the digitisation of knowledge and heritage.

This was one of the recommendations made during the three-day international conference on sustaining excellence, transforming libraries through technology, innovation and value added services in the 'Google era', held in Rajkot, ILA president Prof Ashu Shokeen said.

The other resolutions adopted at the conference included those on ILA reviving its vision to initiate professional skill development programme with stakeholders in academic and public libraries, filling up of vacancies of librarians in schools, colleges and universities and recruiting more professional librarians to provide services to one and all.

Besides, another resolution was adopted to launch a national-level programme to inculcate and promote reading habits among people.

Shokeen highlighted ILA's contributions and achievements for the library and information science profession in the country since its inception in 1933.

It was pointed out at the conference that libraries are not equipped well to reach people in villages and need to be revamped in terms of infrastructure and human resources with more allocation of funds.

It emphasised that provisions under library legislation be given due attention to develop a network of libraries to serve people in need of information, knowledge and cultural heritage.

Over 110 delegates from various parts of country, and from countries like Sri Lanka, Mauritius and Bhutan attended the conference.

Monday, March 7, 2016